सम्पुट मंत्र प्रयोग

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सम्पुट प्रयोग


कुछ साधको ने सम्पुट प्रयोग के बारे में पूछा तो
आज सम्पुट प्रयोग के बारे में बता रहा हू

हमनै बहुत सै येसे मंत्र देखे होगें जिनमें शुरू मे जो बीज होते है वो अंत में भी  लगे होते है लेकिन उनका क्रम उल्टा होता है
या एक बीज जो मूल मंत्र के आगे और पीछे लगा होता है

जैसे ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं

येसे प्रयोगो को ही सम्पुट प्रयोग कहते है
इसे ह्रीं का सम्पुट प्रयोग कहेगें

अपनी कामना पूर्ति के लिये आप अपने गुरू मंत्र का सम्पुट प्रयोग कर सकते है या इष्ट मंत्र का प्रयोग कर सकते है

पहले अपने मंत्र को लिखे फिर अपनी कामना फिर मंत्र को उल्टे क्रम से लिखे

जैसे
ॐ नमः शिवाय लक्ष्मी देहि देहि शिवाय नमः ॐ
या
ॐ नमः शिवाय धनम् देहि देहि शिवाय नमः ॐ

ये पंचाक्षरी  मंत्र का सम्पुट प्रयोग है


इस तरह से आप अपनी किसी इच्छा पूर्ति के लिये मंत्र तैयार कर सकते है
यदि आप अपने गुरू मंत्र का प्रयोग करते है तो सफलता निश्चित मिलती है

या जो भी मंत्र आपने सिद्ध किया हो या जो आपको गुरू मुख से मिला हो उस मंत्र का प्रयोग अपनी कामना पूर्ति के लिये किया जा सकता है
प्रत्येक प्रयोग में गुरू की आज्ञा का होना आवश्यक है
क्योकि तंत्र बिना गुरू के शुरू ही नही होता

कोई येसी इच्छा जो साधारण प्रयोग से सफल नही हो रही हो तो वो सम्पुट प्रयोग से मिल जाती है

वशीकरन , रोग शान्ति , धन प्राप्ति , विधा प्राप्ति , रक्षा  आदि के लिये ये सम्पुट प्रयोग सटीक रहते है

सम्पुट प्रयोग तॉत्रिक मंत्रो या बीज मंत्रो द्वारा किये जाते है
साबरी मंत्र के सम्पुट प्रयोग नही किये जाते


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मंत्र शक्ति का प्रयोग

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मंत्र शक्ति का प्रयोग


हम मंत्रो के जाप करके उने सिद्ध कर लेते है और हमें उनका प्रयोग करने का तरीका नही आता तो सब व्यर्थ है हमारी सारी मेहनत बेकार है

मेरे पास साधक ये पूछते है कि फलाने मंत्र का केसे प्रयोग करू
तो आज मे जानकारी दे रहा हू मंत्रो के प्रयोग के विषय में
ये जानकारी नये साधको के लिये आवश्यक है और बहुत काम की है

रक्षा मंत्रो का प्रयोग

हमने कोई रक्षा के लिये मंत्र या कवच सिद्ध किया है तो उससे हम भस्म को या पानी को अभिमंत्रित करके पिला सकते है

भस्म को बाये हाथ में लेकर मंत्र का पाठ करते रहें 11बार या जितनी तुम चाहो
और अंत में उस पर फूंक मारकर उस भस्म को पीडित को खिला दें और यदि दर्द या परेशानी किसी अंग में है तो थोडी सी भस्म उस पर लगा दें
बस कुछ मिनट में पीडित को आराम आ जायेगा

पानी पढना
येसे ही किसी कटोरी में या गिलास में पानी लेकर बाये हाथ में रखकर दाये हाथ की अनामिका और मध्यमा को पानी में हल्का सा स्पर्श करते हुये मंत्र का जाप करते जाये
मंत्र पूरा होने पर पानी में फूंक मारते जाये
११ बार या जितना तुम चाहो
बस फिर वो पानी पीडित को पिला देने से पीडित को आराम आ जाता है


धागा देना

लाल रंग या काले रंग का धागा लें जो मजबूत हो
यदि गंडा बनाना हो और यदि आता हो तो गंडा बनाते हुये मंत्र का पाठ करते रहे और मंत्र पूरा होने पर फूंक मारते रहे
फिर उसे दाये हाथ में अगुलियो पर लपेट कर मंत्र जाप करते हुये फूंक मारते रहे ११ बार या जितना तुम चाहो
फिर उसे पीडित के गले में या कमर में बॉध दें

कुछ भगत मियादी तौर पर गंडा देते है जो गलत है क्योकि मियाद पूरी होने पर वापस पीडित को परेशानी होने लग जाती है


झाडा देना

पीडित को मंत्र पढते हुये मोर पंख या नीम की टहनी  से या चाकू से मंत्र पढते हुये झाडा देते रहे
झाडे के समय ये ध्यान रखे कि जिससे हम झाड रहे है वो चाकू या झाडा हर बार जमीन को छूता
रहे


रक्षा मंत्रो में जहॉ पर अपनी रक्षा के  लिये सम्बोधन होता है वहॉ पर हमे पीडित का नाम लेना चाहिये
इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये
ताकि मंत्र का प्रभाव पीडित पर पूरा हो

जैसे
कीलू कीलू महा कीलू कीलू अपनी काया

तो इसे येसे बोलना है
कीलू कीलू महा कीलू कीलू अमुक की काया

अमुक की जगह पर पीडित का नाम लें


गुरू मंत्र से या अपने रक्षा मंत्रो से हर शनिवार या अमावस्या पूर्णिमा को पूरे घर में धूप को अभिमंत्रित करके देते रहना चाहिये
गंगाजल के छींटे मारते रहने चाहिये
इससे किसी का किया कराया प्रभावी नही होता
घर नकारात्मक शक्तियो से सुरक्षित रहता है
घर में सुख शान्ति रहती है

घर कीलना
घर के लिये भी येसे ही गंगाजल या धूप अभिमंत्रित करके घर मे देनी चाहिये
कीले लाकर उने अभिमंत्रित करके घर के चारो कोनो मे ठोंक सकते है

एक दिवसीय साधना


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एक दिवसीय साधना








आज कल एक दिन में होने वाली साधनाओ का अधिक प्रचार हो रहा है
जहॉ देखो वहॉ यही बात देखने सुननै को मिल रही है कि यक्षिणी ,अप्सरा ,जिन्न ,चुडैल आदि साधना एक दिन में सिद्ध कर लो
ये टोटका कर लो जिन्न हाजिर हो जायेगा
और जाने क्या क्या

तंत्र मैं एक दिन में सिद्ध होने वाली साधनाये है यै सही है लेकिन ये साधना सिद्ध साधको के लिये है

कोई येसा साधक जो नया है वो कभी भी एक दिन में परी अप्सरा या यक्षणी को प्रत्यक्ष सिद्ध करके वचन नही कर सकता ये असम्भव है

जैसे एक आपेरशन को करने में डाक्टर को महज तीन घण्टै लगते है लेकिन इस तीन घण्टे मै करने वाले आपरेशन को सीखने के लीये उसे वर्षो मेहनत करनी पडती है तब वो तीन घण्टै मे कर पाता है
अब अगर कोई कल मेडिकल कालेज में दाखिला लेकर ये कहे कि में तीन घण्टै मैं आपरेशन कर सकता हू तो क्या ये सम्भव हो पायेगा
नही

लेकिन तंत्र मे हम ये समझते है कि बस ये साधारण सा टोटका कर देने से फलानी सिद्धि प्राप्त हो जायेगी तो ये हमारी निरी मूर्खता है

सिद्धि पाना इतना आसान होता तो आज घर घर में तॉत्रिक होते

इसलिये किसी गुरू के समीप बैठकर तंत्र को समझो और फिर उनके निर्देशन मे साधना करो

मेरा मानना है कि यदि किसी नये साधक को यदि चालीस दिन में भी प्रत्यक्षीकरण होकर सिद्धि मिल जाये तो बहुत सौभाग्य की बात है

रही एक दिन मे सिद्ध होने वाली साधनाओ के बारे में तो ये अधिकतर सिद्ध पुरूषो के लिये है
क्योकि ज्यादातर अप्सरा यक्षणी योगिनी जो एक दिन मे सिद्ध होती है वे  सिर्फ भोग भोगने के लिये होती है
जिने मै  वेश्याओ का दर्जा देता हू जिनका काम केवल शरीर की सन्तुष्टि देना ही है
और कुछ नही

नये साधको को इस तरह की साधनाओ से दूर रहना चाहिये

हमें सबसे पहले गुरूमंत्र को जाप करके तप शक्ति बढानी चाहिये
फिर विधिवत साधना करनी चाहिये
एक बार में यदि किसी कारण वश सफलता ना मिले तो दुबारा तिबारा कोशिश करनी चाहिये

याद ऱखिये लगातार जाप साधन एक दिन सफल होकर रहता है
असफलता मिलने पर गुरू ,इष्ट ,या अपने मंत्र और अपने आप पर से विश्वास नही डगमगाने देना चाहिये
क्योकि विश्वास ही सफलता का दूसरा नाम है


तंत्र में अपने आप से झूठ मत बोलिये
कोई भी कैसा भी भ्रम मत पालिये
शक करने की आदत से दूर रहिये
गुरू चरणो मे बैठकर जिज्ञासा शान्त करना अलग बात है लेकिन फालतू के तर्क देकर अपने को  श्रैष्ठ सिद्ध करना अलग बात है
तंत्र की बारीकियॉ समझ कर साधना करने से सफलता जल्दी मिलती है
किसी भी तरह का भय पास नही फटकने देना चाहिये
याद रखिये हम जिस दैव का पूजन जाप करते है उसकै गुण हमारे अन्दर आने लगते है
इसलिये तामसिक पैशाचिक साधना से यथा सम्भव दूर रहना चाहिये

तंत्र का प्रथम नियम है कि ये पूर्ण गुप्त रखा जाता है इसलिये गुरू को छोडकर  किसी के साथ साधना के अनुभव शेयर नही करने चाहिये
क्योकि कई बार कुछ बाते गुरू से भी बताने के लिये देव मना कर देते है

तो विश्वास कीजिये और साधना में सफल हों


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हवन की विधि



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हवन विधि

हम लोग जब कभी कोई मंत्र जाप करते है तो उसका दशांश हवन किया जाता है
इससे मंत्र के देव को यज्ञ आहुति द्वारा सन्तुष्ट किया जाता है
कुछ विषेश साधनाओ में जाप पूर्ण करके हवन करने का विधान होता है

हवन की शास्त्रीय विधि बहुत  जटिल है प्रत्येक के लिये वो करना सम्भव नही होता
इसलिये में अपने तरीके को यहॉ दे रहा हू में हमेशा येसे ही हवन करता आ रहा हू कोई परेशानी नही होती
और हवन का पूरा फल प्राप्त होता है

बाजार से जाकर हवन की सामग्री ले आये कोशिश करें शुद्ध और अच्छी लाये
उसमें गेहू जौ चावल तिल बूरा या चीनी कपूर घी पंचमेवा  यथा शक्ति मिला लें

कुछ विशेश साधना में सामग्री में कुछ विशेष मिलाया जाता है जैसे धन के लिये कमल गट्टा  , बच ,कूट , इन्द्र जौ , आदि

शहद ,दूध , आदि मिलाकर भी हवन होता है

केवल कमल गट्टे और घी से लक्ष्मी प्राप्ति के लिये हवन किया जाता है
इसमें हवन सामग्री का प्रयोग नही होता
केवल कमल गट्टे और घी से ही किया जाता है


राई , नमक ,तेल ,लाल मिर्च आदि से भी हवन होता है उग्र कर्मो के लिये

सारी सामग्री अच्छे से मिला ले

फिर हो सके तो हवन कुंड तैयार कर लें
नही हों तो येसे ही जमीन पर चौका लगाकर या किसी परात में आम की लकडी जिने समिधा बोलते है को आडी तिरछी रखकर
बैठे
बैठते समय दिशा वही रखे जो जाप के समय रखी है
समिधा जितना हो सके पतली हो तो जलने में ठीक रहती है
बीच में कपूर रखे
पास मैं दीपक जला दें धूप अगर बत्ती जो जलानी है जला दें
हाथ में पानी चावल लेकर संकल्प लें
एक कटोरी में घी पिघला कर रखे
घी डालने के लिये आप चम्मच का इस्तेमाल कर सकते है

कपूर  जला कर अग्नि प्रज्वलित करें
हाथ में चावल लेकर अग्नि देव का आवाहन करें और चावल कुंड मे डालदें

दायेंं हाथ की मध्यमा और अनामिका अगुली को जोडकर अगूठें से आहुति दी जाती है


फिर सबसै पहले गुरू मंत्र की तीन आहुति दें

फिर नीचे लिखे क्रम से सभी की तीन तीन  आहुति दें
ॐ रिद्धि सिद्धि सहिताय श्रीमन महा गणाधिपतये नमः स्वाहा

ॐ श्री इष्ट दैवतायै नमः स्वाहा
ॐ श्री  कुल दैवतायै नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो पित्रभ्यो नमः स्वाहा
ॐ ग्राम देवतभ्यो नमः स्वाहा
ॐ स्थान देवतभ्यो नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो लोकपालभ्योनमः स्वाहा

ॐ सर्वभ्यो दिक्पालभ्यो नमः स्वाहा

ॐ नव ग्रहाये नमः स्वाहा
ॐ _श्री शची पुरन्धरभ्यो नमः स्वाहा
ॐ श्री  लक्ष्मी नारायणभ्यो नमः स्वाहा
ॐ श्री उमा महेश्वरभ्यो नमः स्वाहा
ॐ श्री वाणी हिरण्यगर्भभ्यो  नम स्वाहा
ॐ श्री मातृपितृचरण कमलभ्यो नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो देवतभ्यो नमः स्वाहा
ॐ सर्वभ्यो ब्राह्मणभ्यो नमः स्वाहा
ॐ रिद्धि सिद्धि सहिताय श्री मन महा गण पतये नमः स्वाहा


इनके बाद मूल मंत्र का जिसका हवन करना है उसके जाप करते हुये आहुति दें

जाप की गिनती करने के लिये माला बायें हाथ मे  लेकर घुमाये

बीच बीच में घी की आहुति देते रहें
अग्नि बुझ जाये तो उसे जलाकर ही आहुति दें बुझी अग्नि मे आहुति ना दें
आग जलाने के लिये कपूर का प्रयोग करें


 एक सूखे गोले  मे घी लगाकर थोडा काटकर फिर उसके अन्दर हवन सामग्री भर दें
और उसे वापस कलावे से लपेट कर रखे

हवन पूरा होने पर उस गोले को ॐ पूर्ण वेद पूर्ण आहुति पूर्ण आगम अलख सुख श्रीं ह्रीम स्वाहा
बोलकर कुंड में डाल दें

सारी बची सामग्री उसी मे होम कर देनी चाहिये और घी भी


खडे होकर परिक्रमा लगा लो  प्रार्थना कर लो
बस हो गया हवन


वेसे ये प्रैक्टीकली चीज है गुरू के साथ रह कर पहले एक दो बार देख लो तो ज्यादा बेहतर समझ में आता है

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पंचोपचार पूजन की सामग्री


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पंचोपचार पूजन

कुछ भाई है जो पंचोपचार पूजन के नाम सै कुछ और समझ लेते है
और कन्फ्यूज होजाते है उनके लिये मै आज पंचोपचार पूजन की विधि बता रहा हू

जिस पूजन में पॉच वस्तुयै देवता को दी जाती है उसे पंचोपचार पूजन कहते है

1 अगर बत्ती लगाना या धूप जलाना
 2 दीपक जलाना
3 चंदन ,या सिन्दूर या
   सेन्ट वगैरह देेना
4 भोग में मिठाई ,बताशा        वगैरह देना
5 जल देना

ये सब देते है तो पंचोपचार पूजन कहलाता है यही सब पूजन में मुख्य होता है

ये प्रत्येक पूजन पाठ जाप साधना में जरूरी है

वेसे इसके साथ देवता का आवाहन ,उसे स्थान देना
पैर धोना ,वस्त्र देना ,फिर ये पंचोपचार पूजन किया जाता है


षोडशोउपचार पूजन

सोलह उपचारो से पूजन करने को षोडशोउपचार पूजन कहते है
इसमें देव को बुलाना ,आसन देना ,पैर धोना ,या नहलाना ,वस्त्र देना , चंदन देना ,सिन्दूर , धूप ,दीप ,पुष्प चढाना ,फल ,नैवेध,जल ,ताम्बूल , प्रार्थना ,
विसर्जन आदि ये सब करते है


लेकिन सबसे मैन वही पंचोपचार पूजन किया जाता है

इन सबको इनके मंत्रो द्वारा देव को चढाया जाता है मंत्रो के लिये मेरी प्राथमिक पूजन विधि नाम से पोस्ट है वो देखे

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ज्योत करने की विधि


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ज्योत करने की विधि

नये पुराने साधको केलिये में ज्योत करने के बारे में बता रहा हू
ज्योत बाती करना
जिसे गॉवो मे अग्यारी करना कहते है

गॉव देहातो मे सबसे ज्यादा भगत लोग इसके माध्यम से देवताओ को भोग देते है
और ये सही भी है ये एक छोटा सा हवन का रूप होता है

स्थान के देव , चामण , घर के पितर , भूमिया , आदि देवो को इससे भोग दिया जाता है
वोभोग उने प्राप्त होता है
सर पर खेलने वाले सारे देव देवी चामण इसी तरह से ज्योत पर आकर ही भोग लेते है

सभी साधको को अपनी इष्ट की शक्ति बढाने उने भोग देने के लिये कम से कम हफ्ते मे एक बार    ज्योत अवश्य  करनी चाहिये

जो दिन तुम्हारे देव का हो उस दिन ज्योत करनी चाहिये
नार्मल हर शनिवार  को की जाती है



विधि 🔥

किसी कटोरी मे तैल रखें और थोडी सी अपने पास धूप रखें

उपला या गोबर के कंडे को जला कर  ( या गैस पर कुछ देर रख दे  पूरा जलने के बाद  )|   लाल होने के बाद उस पर धूप ( हवन सामग्री वाली ) डाले चुटकी से चारो ओर  फिर चम्मच से सरसो का तेल डाले ( कुछ विशेष मे घी से की जाती है )
थोडा सा फिर  माचिस से किसी कोने पर  जला दो

कुछ दीपक पास में रख देते है
दीपक पास मे रखने से ज्वलनशील गैस बनती है जिससे कंडी दीपक की लौ से आग पकड लेती है और जल उठती है

देहातो में भगत इसे देवता का आना कहते है

कुछ कपूर से जलाते है
जैसे चाहो जला लो बस ज्योत जलनी चाहिये

जब कंडी चारो तरफ से बहुत अच्छी जलने लगेगी
तब देव का आवाहन करें मानसिक उनसे ज्योत से भोग लेनी की प्रार्थना करें और जो भी लोंग बताशे या मिठाई जायफल नीबूं या जो भी भोग देना है वो उसी आग मे बीचोबीच  चढा  दें
चढाते समय देवता का नाम बोलते रहे
सबके अलग अलग भोग दें

उस कंडी पर धूप तेल थोडा थोडा बीच बीच मे डालते रहे

देवताओ को लोंग लगाकर बताशे अवश्य चढाये इनसे देव को शक्ति मिलती है

आग जलाने के लिये तुम कपूर का भी इस्तेमाल कर सकते हो

कुछ भाई कहते हैं कि ज्योत माचिस से नही जलानी चाहिये तो चाहे केसे भी जला लो
कपूर से दीपक से आखिर इने तो माचिस से ही जलाओगे ना
बाकी आपकी इच्छा अरणि मंथन से जला लो

उपला ( कंडी  ) अच्छी तरह से जलना चाहिये
नही तो ज्योत पर आग ठीक से नही जलेगी

बीच बीच में धूप तेल डालते रहना है

ये ज्योत बन्द कमरे में नही करनी चाहिये किसी खुली जगह पर करनी ज्यादा उचित रहती है

ज्योत करने के बाद मे उसे बच्चो की पहुच से दूर ऱखें क्योकि उसमें काफी समय तक आग रहती है

ज्योत वेसे तो कभी भी कर सकते है लेकिन ये सांयकाल अधिकतर की जाती है और उचित भी है

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सुरक्षा चक्र


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सुरक्षा चक्र


हमने साधना क्षेत्र में सुरक्षा चक्र के बारे मे पढा और सुना होगा आज में सुरक्षा चक्र के बारे में जानकारी दे रहा हू कि ये क्या है क्यो आवश्यक है कैसे लगाया जाता है

तंत्र साधना में  कुछ उग्र
साधना है कुछ सोम्य साधना है इनमें से सौम्य साधना बिना किसी बाधा के सिद्ध हो जाती है
उग्र साधना में कुछ भूल चूक होने पर हमें कई बार बहुत मुश्किलो का सामना करना पडता है
साधना के दौरान किसी विघ्न के कारण शक्ति के कोप का शिकार होना पडता है
कुछ साधनायो मे चूक होने पर पागल या जान जाने का डर भी रहता है
कुछ मे परिवार के सदस्यो को हानि हो सकती है

तंत्र की क्रिया उलट होकर हमें नुकसान पहुचाती है

तो इन सारी परेशानी से बचाव के लिये हम साधना करते समय एक सुरक्षा घेरा खींच कर साधना में बैठतै है
यही घेरा सुरक्षा चक्र कहलाता है
इसे कार लगाना भी कहते हैं
जो कुछ चूक होने पर हमारी रक्षा करता है


कैसे लगाये सुरक्षा चक्र

जब हम साधना करने बैठतै है तो सबसे पहले हमें अपने आसन के चारो ओर
एक गोल घेरा चाकू की मदद से खीच लेना चाहिये घैरा खीचते समय अपने किसी रक्षा मंत्र का जाप करना चाहिये जो पहले से ही सिद्ध कर रखा हों
आप किसी रक्षा स्त्रोत का पाठ भी कर सकते है
किसी कवच को पढतै हुये भी घेरा बना सकते है
कुछ ना हो तो अपने गुरूमंत्र का जाप करते हुये भी घेरा बना सकते है
अपने इष्ट मंत्र से भी कार खीच सकते है

घेरा चाकू से , किसी लोहे की कील से भी खीच सकते हैं
अपने चारो ओर पानी से भी घेरा बना सकते हैं
मंत्र पढते हुये भस्म से भी घेरा खीचा जा सकता है
कुछ साधनायो में सिन्दूर या शिगंरफ से भी घेरा बनाया जाता है

चाहे कुछ हो साधना के दौरान हमेशा कार लगाकर ही बैठे फिर पूजन आदि शुरू करें

कई साधनायो में कुछ बहुत ही डरावने अनुभव होते है
तो वो सब कार से बाहर ही होगे कोई भी उपद्रव घेरे के अंदर प्रवेश नही कर सकता है
शमसान में साधना करते समय हमेशा कार लगाकर बैठे
भूत प्रेत बहुत उपद्रवी होते है ये साधक का साधना करते समय ही सामान उठा कर ले जाते है और बहुत परेशान करते है
इसलिये इनकी साधना चाहे घर में करो या बाहर हमेशा सुरक्षा घेरा खीच कर बैठे
कुछ साधनायो में मल मूत्र की बरसात होती है
कुछ में आग के शोले बरसते है
कुछ में कटे हुये मानव अगो की बरसात होती है

तो यदि साधक ने कार नही लगायी है तो वो नुकसान उठा बैठता है
इसलिये हमेशा घेरा लगाकर ही साधना करें

और हॉ सबसे जरूरी बात आपने चाहे जो साधना सिद्ध कर रखी हो चाहे आपके इष्ट कोई हो हमेशा घेरे के अंदर ही रह कर साधना करनी चाहिये

और चाहे जो हो जाये बीच में कभी भी आसन से खडे नही होना चाहिये
साधना पूरी किये बिना भूलकर भी घेरे से बाहर नही जाना चाहिये
साधक यदि येसा करता है तो उसे हानि उठानी पडेगी

साधना के दौरान जो घेरा आपने खीचा है उसके अंदर ही आपको सत्य दिखाई देखा
घेरे से बाहर की दुनिया आपके लिये असत्य है
घेरे से बाहर चाहे आपके परिवार वालो को कोई जान से मारता हुया दिखाई दें
चाहे ऑधी से पेड उखड कर अपने ऊपर गिरते दिखाई दें
अपने आसन पर जम कर बैठे रहना आपका कुछ नही बिगडेगा
यहीं गुरू और शिष्य का विश्वास काम आता है गुरू ने कहा कि घेरे में कुछ नही होगा तो विश्वास करके बैठे रहो कुछ नही होगा
यदि गुरू के वचन का विश्वास नही किया गिरते पेड को देख कर भागनै लगे घेरे से बाहर गये तो वो आखिरी दौड हो सकती है

चाहें भय से मल आये या मूत्र वही आसन पर ही बैठे बैठे करो आपकी साधना खण्डित नहीं होगी पर गलती से भी साधना रोक कर घेरे से  बाहर नही जाना चाहिये

इसलिये कहा है कि जो डर गया सो मर गया
इसलिये कभी भी साहस कम होने पर ज्यादा उग्र साधना नही करनी चाहिये

 शमसान साधना , वैताल साधना , मरी साधना , ऐसी ही उग्र साधना है ये साधना गुरू के सानिध्य में उनके साथ रहने पर ही करनी चाहिये

तो आप लोग ये समझ गये होगे कि सुरक्षा चक्र हमारे लिये कितना आवश्यक है

बाकी विस्तार से आप लोग अपने सदगुरूदेव जी से पूछ सकते है



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